Friday 3 March 2017

फीचर लेखन की प्रक्रिया

फीचर
फीचर को अंग्रेजी शब्द फीचर के पर्याय के तौर पर फीचर कहा जाता है। हिन्दी में फीचर के लिये रुपक शब्द का प्रयोग किया जाता है लेकिन फीचर के लिये हिन्दी में प्रायः फीचर शब्द का ही प्रयोग होता है। फीचर का सामान्य अर्थ होता है – किसी प्रकरण संबंधी विषय पर प्रकाशित आलेख है। लेकिन यह लेख संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाले विवेचनात्मक लेखो कि तरह समीक्षात्मक लेख नहीं होता |

फीचर शब्द लैटिन के “FACTRA” से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है आँख , नाक, मुँह, आकृति या रूपरेखा इत्यादि | जे.जे. सीडलर के अनुसार  कोई भी घटना जिसमें मनुष्यों कि अभिरुचि हो, लेकिन समाचार से हटकर या समाचार रहित होकर वह जब कथात्मक रूप में अपने पाठकों का मनोरंजन करता हो तो वह फीचर है | फीचर का मुख्य उद्देश्य मनोरंजन कि पद्धति से ज्ञानवर्धन करना है |

फीचर समाचार पत्रों में प्रकाशित होने वाली किसी विशेष घटना, व्यक्ति, जीव – जन्तु, तीज – त्योहार, दिन, स्थान, प्रकृति – परिवेश से संबंधित व्यक्तिगत अनुभूतियों पर आधारित वह विशिष्ट आलेख होता है जो कल्पनाशीलता और सृजनात्मक कौशल के साथ मनोरंजक और आकर्षक शैली में प्रस्तुत किया जाता है। अर्थात फीचर किसी रोचक विषय पर मनोरंजक ढंग से लिखा गया विशिष्ट आलेख होता है।

फीचर लेखन की प्रक्रिया
·      विषय चयन
·      शोध
·      रुपरेखा
·      लेखन प्रक्रिया

विषय का चयन
किसी भी फीचर की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह कितना रोचक, ज्ञानवर्धक और उत्प्रेरित करने वाला है। इसलिये फीचर का विषय समयानुकूल, प्रासंगिक और समसामयिक होना चाहिये। अर्थात फीचर का विषय ऐसा होना चाहिये जो लोक रुचि का हो, लोक – मानव को छुए, पाठकों में जिज्ञासा जगाये और कोई नई जानकारी दे।

शोध
फीचर का विषय तय करने के बाद दूसरा महत्वपूर्ण चरण है शोध या विषय संबंधी सामग्री का संकलन। उचित जानकारी और अनुभव के अभाव में किसी विषय पर लिखा गया फीचर उबाऊ हो सकता है। विषय से संबंधित उपलब्ध पुस्तकों, पत्र – पत्रिकाओं से सामग्री जुटाने के अलावा फीचर लेखक को बहुत सामग्री लोगों से मिलकर, कई स्थानों में जाकर जुटानी पड़ सकती है।



रुपरेखा
फीचर से संबंधित पर्याप्त जानकारी जुटा लेने के बाद फीचर लेखक को फीचर लिखने से पहले फीचर का एक योजनाबद्ध खाका बनाना चाहिये।
फीचर लेखन की संरचना
·         विषय प्रतिपादन या भूमिका
·         विषय वस्तु की व्याख्या
·         निष्कर्ष
विषय प्रतिपादन या भूमिका
फीचर लेखन की संरचना के इस भाग में फीचर के मुख्य भाग में व्याख्यायित करने वाले विषय का संक्षिप्त परिचय या सार दिया जाता है। इस संक्षिप्त परिचय या सार की कई प्रकार से शुरुआत की जा सकती है। किसी प्रसिद्ध कहावत या उक्ति के साथ, विषय के केन्द्रीय पहलू का चित्रात्मक वर्णन करके, घटना की नाटकीय प्रस्तुति करके, विषय से संबंधित कुछ रोचक सवाल पूछकर।  मिका का आरेभ किसी भी प्रकार से किया जाये इसकी शैली रोचक होनी चाहिये मुख्य विष्य का परिचय इस तरह देना चाहिये कि वह पूर्ण भी लगे लेकिन उसमें ऐसा कुछ छूट जाये जिसे जानने के लिये पाठक पूरा फीचर पढ़ने को बाध्य हो जाये।
विषय वस्तु की व्याख्या
फीचर की भूमिका के बाद फीचर के विषय या मूल संवेदना की व्याख्या की जाती है। इस चरण में फीचर के मुख्य विषय के सभी पहलुओं को अलग – अलग व्याख्यायित किया जाना चाहिये। लेकिन सभी पहलुओं की प्रस्तुति में एक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष क्रमबद्धता होनी चाहिये। फीचर को दिलचस्प बनाने के लिये फीचर में मार्मिकता, कलात्मकता, जिज्ञासा, विश्वसनीयता, उत्तेजना, नाटकीयता आदि का समावेश करना चाहिये।
निष्कर्ष
फीचर संरचना के इस चरण में व्याख्यायित मुख्य विषय की समीक्षा की जाती है। इस भाग में फीचर लेखक अपने ऴिषय को संक्षिप्त रुप में प्रस्तुत कर पाठकों की समस्त जिज्ञासाओं को समाप्त करते हुये फीचर को समाप्त करता है। साथ ही वह कुछ सवालों को पाठकों के लिये अनुत्तरित भी छोड़ सकता है। और कुछ नये विचार सूत्र पाठकों से सामने रख सकता है जिससे पाठक उन पर विचार करने को बाध्य हो सके।
लेखन प्रक्रिया
Ø शीर्षक
किसी रचना का यह एक जरुरी हिस्सा होता है और यह उसकी मूल संवेदना या उसके मूल विषय का बोध कराता है। फीचर का शीर्षक मनोरंजक और कलात्मक होना चाहिये जिससे वह पाठकों में रोचकता उत्पन्न कर सके।
Ø छायाचित्र
छायाचित्र होने से फीचर की प्रस्तुति कलात्मक हो जाती है जिसका पाठक पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। विषय से संबंधित छायाचित्र देने से विषय और भी मुखर हो उठता है। साथ ही छायाचित्र ऐसा होना चाहिये जो फीचर के विषय को मुखरित करे फीचर को कलात्मक और रोचक बनाये तथा पाठक के भीतर विषय की प्रस्तुति के प्रति विश्वसनीयता बनाये।
Ø भाषा शैली
फीचर कि भाषा कलात्मकता होनी चाहिए जिससे पाठकों के मन-ह्रदय  में रमणीयता जगाई जा सके | मुहावरों, कहावतों एवं लोकोक्तियों का सटीक प्रयोग करना चाहिए | फीचर कि गुणवत्ता को बरक़रार रखने के लिए भाषा कि स्पष्टता बेहद जरुरी है |

फीचर की विशेषतायें
·         किसी घटना की सत्यता या तथ्यता फीचर का मुख्य तत्व होता है। एक अच्छे फीचर को किसी सत्यता या तथ्यता पर आधारित होना चाहिये।
·         फीचर का विषय समसामयिक होना चाहिये।
·         फीचर का विषय रोचक होना चाहिये या फीचर को किसी घटना के दिलचस्प पहलुओं पर आधारित होना चाहिये।
·         फीचर को शुरु से लेकर अंत तक मनोरंजक शैली में लिखा जाना चाहिये।
·         फीचर को ज्ञानवर्धक, उत्तेजक और परिवर्तनसूचक होना चाहिये।
·         फीचर को किसी विषय से संबंधित लेखक की निजी अनुभवों की अभिव्यक्ति होनी चाहिये।
·         फीचर लेखक किसी घटना की सत्यता या तथ्यता को अपनी कल्पना का पुट देकर फीचर में तब्दील करता है।
·         फीचर को सीधा सपाट न होकर चित्रात्मक होना चाहिये।
·         फीचर कीभाषा सरल, सहज और स्पष्ट होने के साथ – साथ कलात्मक और बिंबात्मक होनी चाहिये।




Thursday 2 March 2017

अनुसंधान और शोध

शोध : परिचय
§  जिज्ञासा अनुसंधान के लिए बुनियादी प्रेरणा है। यह कहा जाता है कि जब से एडम ने जिज्ञासा से बाहर ज्ञान का वर्जित फल चख लिया, वह पहले शोधकर्ता बन गया। तब से, ज्ञान के लिए मानव ने खोज जारी रखा है।समय की शुरुआत से ही  जिज्ञासु मनुष्य  प्रकृति, जीवन और ब्रह्मांड के रहस्यों को अनावरण करने के लिए कोशिश कर रहा है। मनुष्य  सितारों, आसमान और समुद्र को  विस्मय और आश्चर्य की भावना के साथ देखता रहा है ।
§  'पत्थर और भाला' के युग से बिजली और सापेक्षता के युग तक; और अब सूचना प्रौद्योगिकी के वर्तमान दिनों में , मनुष्य ने  ज्ञान की नई सीमाओं को एक भयानक गति से खोज रहा है । वह दुनिया के भौतिक दायरों को निरंतर पर कर रहा है ।
§  सभी अनुसंधान क्रमिक या  व्यवस्थित ज्ञान के लिए एक खोज है। यह प्राकृतिक घटना के एक पर्यवेक्षणीय अध्ययन या अवधारणाओं जो इन घटनाओं में व्यक्त होते हैं के बीच संबंधों का  एक तर्कसंगत अध्ययन  है। ज्ञान, संगठित और व्यवस्थित रूप में  इकट्ठा किया जाता है। फिर उस जांच को  अनुसंधान उपकरण की मदद से मान्य किया जाता है।
§  अनुसंधान अक्सर अवलोकन के साथ शुरू होता है। अवलोकन बुद्धिपूर्ण तरीके से हमारे  संवेदी तंत्र का इस्तेमाल करता है । हम  यह जानते हैं कि अवलोकन तथ्यों, संबंधों और घटनाओं को समझने के लिए एक अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। अगर अवलोकन सटीक है, परिणाम और अधिक विश्वसनीय हो जाएगा। अवलोकन के  अलावा, कई अन्य अनुसंधान उपकरण और तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है।
§  अनुसंधान का मतलब  कुछ हद तक जांच करने  का रवैया है। यह तथ्यों के लिए एक ईमानदार, बुद्धिमान और व्यापक खोज है। यह अज्ञात के लिए खोज है, और ज्ञात के लिए भी । अनुसंधान इस ब्रह्मांड के रहस्यों को उजागर करने के लिए किया जाता है
§  अनुसंधान एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें व्यवस्थित संग्रह, विश्लेषण और डेटा की व्याख्या के माध्यम से समस्याओं का भरोसेमंद  समाधान तक पहुंचा जा सकता है। अनुसंधान कभी-कभी परिस्थितियों में हो रही घटनाओं का पता लगाने कि कोशिश करता  है । अनुसंधान वैज्ञानिक खोज का एक पहलू है और अब एक प्रमुख अनुशासन बन गया है।
§  यह,तथ्यों  का विश्लेषण करने , वर्गीकृत करने  या फिर  मात्रात्मक या गुणात्मक तरीके से एकत्रित  या व्यवस्थित करने का एक  तरीका है। रस्क फ्रेम के अनुसार, "अनुसंधान देखने का  एक बिंदु , जांच का रवैया या मन की एक है।" यह तथ्यों का विश्लेषण कर उन्हें प्रकाश में लाने  और समस्याओं का  समाधान पाने के लिए एक प्रयास है।




अनुसंधान : भूमिका और महत्त्व

रुम्मेल  के अनुसार  "अनुसंधान , खोज का विकास और ज्ञान को सत्यापित करने के लिए एक प्रयास हैं " । इसका मुख्य उद्देश्य सत्य की खोज है। अनुसंधान सोच का एक व्यवस्थित और परिष्कृत तकनीक है।

यह "समस्याओं का समाधान प्राप्त करने के लिए और अधिक विशेष उपकरणों, उपकरणों और प्रक्रियाओं के रोजगार की तुलना में साधारण साधन के साथ संभव हो जाएगा।" इस तरह से अनुसंधान के लिए एक व्यवस्थित और वस्तुनिष्ठ विश्लेषण निकलता है। इसका उद्देश्य नियंत्रित टिप्पणियों की रिकॉर्डिंग, सामान्यीकरण, सिद्धांतों और सिद्धांतों को विकसित करने के लिए है |

एक शोधकर्ता के उपकरणों में से कुछ इस प्रकार हैं:
·       विकसित शास्त्रीयता
·       सटीक निरिक्षण
·       पारदर्शिता
·       तर्कसंगत सोच
·       लम्बे समय तक कार्य करने की इच्छा शक्ति
किसी भी शोध को एक एकीकृत सिद्धांत या एक वैचारिक प्रणाली के आधार पर किया जाना चाहिए।  शिथिल टिप्पणियों की एक श्रृंखला अक्सर एक व्यवस्थित अनुसंधान की ओर ले जाती है । फैसले की परिपक्वता क्षेत्र के एक व्यापक अनुभव के बाद आता है।

अनुसंधान के मुख्य प्रकार निम्न है :-
Ø बेसिक रिसर्च
Ø एप्लाइड रिसर्च
Ø एक्शन रिसर्च













मीडिया शोध
मीडिया रिसर्च, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और शारीरिक पहलुओं और विभिन्न मास मीडिया के प्रभाव का अध्ययन है। उदाहरण के लिए, लोग एक विशेष माध्यम के साथ कितना समय बिताते हैं? यह लोगों के दृष्टिकोण में परिवर्तन लाने का असरदार है या नहीं? माध्यम के  प्रयोग से किसी भी प्रकार का हानिकारक प्रभाव पड़ता है? प्रभाव प्रौद्योगिकी के कारण है  या फिर कार्यक्रम की सामग्री की वजह से ? मीडिया उपयोगकर्ताओं क्या देखना, सुनना, पढना और अनुभव करने कि उम्मीद करते है ?
मीडिया शोध सामाजिक शोध से ही ली गयी चीज है \
मीडिया शोध के अंतर्गत –
Ø मीडिया के विभिनन पक्षों का विकास, उनकी उपलब्धियां एवं प्रभाव पर गहनता से  विचार विमर्श तथा वैज्ञानिक विधि से अध्ययन किया जाता है |
Ø मीडिया कैसे और क्या कार्य करता है ?
Ø मीडिया में कौन कौन सी तकनिक प्रयोग की जाती है ?
Ø मीडिया की प्रकृति क्या है ? उसका विज्ञापन और पारिवारिक सम्बन्ध ?
Ø मीडिया समाज पर कितना प्रभावी है ?
Ø किस श्रेणी के लोग किस प्रकार की मीडिया  का प्रयोग करते है?
Ø क्या इससे प्रयोगकर्ताओ की दृष्टिकोण में कोई परिवर्तन होता है

मीडिया  शोध  का  उद्देश्य

मीडिया शोध के अंतर्गत सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और भौतिक  पहलुओं का अध्ययन किया जाता है।
मीडिया शोध का मुख्य उद्देश्य निम्न है –
·       भ्रमों का निवारण – मीडिया शोध से भ्रमों का निवारण होता है , मीडिया में कई प्रकार के कार्यक्रम दिखाए जाते है जो समाज में फैले कुरीतियों, समजिक रुढियों एवं पाखंडों पर प्रहार करते हैं |
·       नए विचारों का विकास – किसी भी विषय पर जब भी कोई शोध किया जाता है तो शोध के अध्ययन से एक नै बात निकल कर सामने आती है और तब शोध से माध्यम से नए विचारों का विकास होता है |
·       समस्याओं का निदान – शोध के अध्ययन से समस्याओं का निदान होता है| शोध से पता चलता ही कि समस्या क्या है और समस्या का कारण क्या है ?
·       प्रतिपुष्टि – किसी भी विषय या कार्यक्रम पर किये गए शोध से हमें उस कार्यक्रम के बारे में अलग अलग लोगों से उनकी राय पता चलती है , उनकी प्रतिक्रिया मिलती है और दर्शक उस कार्यक्रम को पसंद करते है या नहीं |
·       सामाजिक और सांस्कृतिक गतिशिलता का अध्ययन – खेल, त्यौहार, नृत्य ये सब संस्कृति के अंग है और संस्कृति समाज द्वारा दी जाती है | मीडिया समाज और संस्कृति को कैसे दिखा रहा है |

मीडिया शोध का सिद्धांत

मीडिया रिसर्च में  मीडिया का विकास , उनकी उपलब्धियों और प्रभाव के बारे में अध्ययन की एक पूरी श्रृंखला शामिल है। यह अखबारों, पत्रिकाओं, रेडियो, टीवी, सिनेमा या संचार के अन्य आधुनिक और परंपरागत माध्यमों को एकत्रित कर उनका विश्लेषण करती  है ।
सिद्धांतसिद्धांत यानि क्या और कैसे होनी चाहिए | हर एक कार्य को करने का एक निश्चित तरीका होता है | सिद्धांत किसी भी विषय या वास्तु का हो सकता है |
मीडिया शोध के भी कुछ सिद्धांत है और वह निम्न है –
    I.        निष्पक्षता का सिद्धांत : मीडिया समाज का वास्तविक दर्पण होता है | किसी भी प्रकार के शोध में निष्पक्षता का सिद्धांत होना अनिवार्य है | निष्पक्षता का सिद्धांत सर्वोपरि होता है| शोधकर्ता को शोध के दौरान किसी का भी पक्ष नही लेना चाहिए | उसे सभी आकड़े निष्पक्ष होकर अपनी रिपोर्ट में शामिल करना चाहिए और किसी भी तथ्य या आकड़े को छुपाना नही चाहिए |
  II.        लोकतान्त्रिक मूल्यों की रक्षा का सिद्धांत – –हमारा देश एक लोकतान्त्रिक देश है जहाँ हर किसी को अपनी बात रखने कि आज़ादी है अतः मीडिया का कार्य है किसी भी व्यक्ति , संघठन आदि के लोकतान्त्रिक मूल्यों कि वो रक्षा करे एवं एक सामान्य जनमानस को सशक्त करे |
III.        गोपनीयता कि रक्षा का सिद्धांत – मीडिया में स्रोत कि गोपनीयता बनाये रखना बहुत जरुरी है ताकि कोई भी उस स्रोत को किसी भी प्रकार कि हानि न पहुंचा सके |
IV.        वैज्ञानिक दृष्टि का सिद्धांत – किसी भी खबर को कल्पना के आधार पर दिखाना उचित नहीं होता, जरुरी है कि वो खबर वैज्ञानिक धरातल पर खरी उतरे ताकि समाज में अन्ध्विशस का प्रचार न हो पाए | इसके लिए वैज्ञानिक दृष्टि के सिद्धांत की सहायता लेनी अति आवश्यक है |
  V.        पारदर्शिता का सिद्धांत – मीडिया का दूसरा अर्थ ही पारदर्शिता है | मीडिया में दिखाए जा रहे किसी भी चीज़ से लोग अपनी एक विचारधारा बना लेते है , यह विचारधारा मीडिया द्वारा दिखाई गयी सामग्री पर आधारित होता है | इसलिए जरुरी है कि मीडिया पारदर्शिता के सिद्धांत का पालन करेसोत्र और किसी के दवाव में आकर कम ना करे |
VI.        समय सापेक्षता का सिद्धांत – मीडिया में दिखाई जा रही किसी भी खबर का मूल्य एक निश्चित समय अवधि तक ही रहता है जिसके बाद उस खबर का कोई मूल्य नहीं रह जाता | अतः मीडिया में समय सापेक्षता का सिद्धांत अति आवश्यक है |






निष्कर्ष
शोध एक बहुत ही मुश्किल कार्य है | जिज्ञासा अनुसंधान के लिए बुनियादी प्रेरणा है | सभी अनुसंधान क्रमिक या  व्यवस्थित ज्ञान के लिए एक खोज है। अनुसंधान अक्सर अवलोकन के साथ शुरू होता है। अगर अवलोकन सटीक है, परिणाम और अधिक विश्वसनीय हो जाएगा। अनुसंधान एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें व्यवस्थित संग्रह, विश्लेषण और डेटा की व्याख्या के माध्यम से समस्याओं का भरोसेमंद  समाधान तक पहुंचा जा सकता है। रस्क फ्रेम के अनुसार, "अनुसंधान देखने का  एक बिंदु , जांच का रवैया या मन की एक है।

शोध करते वक़्त निम्न बातों का ध्यान रखना अति आवश्यक है –
*समस्या का चयन बहुत चुनौतीपूर्ण कार्य है|
* समस्या स्पष्ट और मूर्त होनी चाहिए |
*समस्या ऐसी हो जिसका समाधान निकल सके |
*नवीनता और रुचिमय होनी चाहिए |


मीडिया एक ऐसा क्षेत्र है जिससे सरे लोग जुड़े है, मीडिया का समाज पर बहुत गहरा प्रभाव है | अतः जरुरी है कि अनुसंधान करते वक़्त मीडिया को अपने आँख और कान खुले रखने चाहिए |