Saturday, 18 February 2017

टीवी रिपोर्टिंग

टेलीविज़न : उद्भव और विकास
टेलीविज़न यानी ‘दूर का दृश्य’ समक्ष उपस्थित होना | ग्रीक अवं लैटिन से बने इस सब्द का अर्थ है “ मैं देखता हूँ” | टेलीविज़न आज जनसंचार का सबसे प्रभावशाली माध्यम है | रेडियो तकनीक के विस्तार के रूप में टीवी आया , जिसमे श्रव्यता के साथ-साथ दृश्यात्मकता भी थी | दृश्य-श्रव्य होने के कारन टेलीविज़न एक चमत्कार के रूप में सामने आया | छोटी सी स्क्रीन पर अपने जैसे चलते- फिरते व्येक्तियों को देखना किसी जादू से कम नहीं था |
1926 में स्कॉटलैंडवासी जॉन लोगी बेयर्ड ने टेलीविज़न का आविस्कर किया |
भारत में टेलीविज़न की शुरुआत 15 सितम्बर 1959 को दिल्ली में नागरिकों को सामाजिक शिक्षा देने के लिए यूनेस्को की मदद से प्रयोगात्मक सेवा के रूप में हुई | दिल्ली में हुई एक प्रदर्शनी में फिलिप्स कंपनी ने पहली बार भारत में टीवी को प्रदर्शित किया |
हिंदी का प्रथम समाचार बुलेटिन 15 अगस्त 1965 को प्रारंभ हुआ |
3 दिसंबर 1971 को प्रथम अंग्रेजी समाचार बुलेटिन प्रसारित किया गया |
3 अक्टूबर 1972 में मुंबई में दूरदर्शन स्थापित हुआ |
1976 में दूरदर्शन आकाशवाणी में स्वायत्त हो गया |
15 अगस्त 1982 में हुए एशियाई खेलों का प्रथम रंगीन प्रसारण किया गया |
नब्बे के दशक के प्रारंभ में खारी युद्ध का “सीधा प्रसारण” कर सी.एन.एन चैनल ने भारत में केबल नेटवर्क का प्रवेश करा दिया |
टेलीविज़न के संदर्भ में  एडवर ई. विलिस ने लिखा है – टीवी मनोरंजन का वह माध्यम हैं , जिससे करोरो लोग एक ही बात पर हँसकर भी अकेले रह जाते है | यह परिभाषा न केवल सार्थक है , बल्कि भुमंडलीकरण के ओर भी संकेत करता है कि यह माध्यम विश्व के कोने कोने तक दस्तक दे चूका हैं |
टेलीविज़न :- जनसंचार माध्यम
आज टेलीविज़न  जनसंचार का सबसे प्रभावशाली माध्यम बन चूका है | ध्वनि के साथ चित्रों को प्रेषित करने के कारण इससे मानवीय संवेदना को सफलतापूर्वक प्रस्तुत किया जाता है | इसलिए दर्शक पर इसका सीधा प्रभाव परता है | इस श्रव्य दृश्य मीडिया की कोई भौगोलिक सीमा न होने के कारन इसे ग्लोबल मीडिया भी बोला जाता है |
भारत में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के रूप में टीवी पिछले 20-25 वर्षों से घर-घर में पहुँच गया है फिर चाहे वो शहर हो या ग्रामीण क्षेत्र | इन शेहरो और कस्बों में केबल टीवी से सैकरों चैनल दिखाए जाते है |
एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार भारत में कम से कम  80% परिवारों के पास अपने टेलीविज़न सेट है और मेट्रो में रहने वाले दो तिहाई लोगों के पास घर में केबल है |
टीवी समाचार की बात करे तो आज हमारे देश में हिंदी समाचार चैनलों की भरमार और एक अलग पहचान है | आज आम व्यक्ति से लेकर विशिष्ट व्यक्ति भी समाचारों के लिए टीवी पर ही निर्भर है | टीवी पत्रकारिता समाज में अपना अलग और महत्वपूर्ण स्थान बना चुकि है|
पत्रकारिता के क्षेत्र में सबसे पुराना माध्यम मुद्रित अर्थात समाचार पत्रों का है | समाचार पत्रों को केवल पढ़ा जा सकता है और दूसरी तरफ रेडियो का प्रभाव केवल कानो तक है अर्थात उसके समाचार केवल सुने जा सकते है | परन्तु टीवी में इन दोनों के सम्मिलित प्रभाव के साथ साथ समाचारों की घटना को सचित्र देखा भी जा सकता है | अतः इसका प्रभाव हमारे आँखों और कानो पर सामान रूप से होता है जो हमारी भावनाओं को सहज रूप से प्रभावित करता है| 
टीवी समाचार के लिए रिपोर्टिंग
टीवी रिपोर्टिंग दरअसल एक पूरा पैकेज है, जिसमें रिपोर्टर की समझ, उसकी भाषा कहानी कहने की उसकी कला, उसकी आवाज, सब मिलकर उसकी काबिलियत साबित करती है। टीवी रिपोर्टर की असली पहचान उसकी रिपोर्टिंग क्षमता से ही होती है। जो रिपोर्टर खबरों को खोज निकालने में जितना माहिर होगा, वो मीडिया के क्षेत्र में उतना ही सफल रहेगा और रिपोर्टरों की भीड़ में अपनी अलग पहचान बना पाएगा |
टीवी के रिपोर्टर को अपनी एक फाइल रिपोर्ट करने के लिए लम्बी मशक्कत करनी पड़ती है | घटनास्‍थल पर जाकर घटना का विजुअल सहित सही ब्‍यौरा लेना और उसे निर्धारित न्‍यूज फॉर्मेट में सिलसिलेवार तरीके से लिखकर या बोलकर विजुअल और ग्राफिक्‍स टेक्‍स्‍ट की मदद से टीवी के जरिए दर्शकों तक पहुंचाना ही सही मायने में टीवी रिपोर्टिंग है। रिपोर्टिंग के लिए निकलते वक्त उसके साथ कैमरा-मैन होता है जो फील्ड में घटना के विसुअल और लोगो की प्रतिक्रियाएं शूट करता है | जबरदस्त कम्पटीशन के इस दौर में टीवी रिपोर्टर के लिए आज सबसे बड़ी चुनौती है कि वह सबसे पहले अपने चैनल में न्यूज़ ब्रेक करे | इसके लिए उसके पास ओ.बी. वैन या फ्लाई-वे जैसी सुविधाएँ मौजूद होती हैं |

टीवी रिपोर्टिंग की प्रक्रिया भी सामान्य रिपोर्टिंग की प्रक्रिया के सिद्धांत पर ही आधारित है , जैसे :
·        घटना स्थल पर पहुंचना |
·        घटना स्थल का अवलोकन करना |
·        आंकड़े और तथ्य जुटाना |
·        तथ्य का सत्यापन |
·        क्रमबद्ध रूप से रिपोर्ट तैयार करना |
·        कार्यालय को रिपोर्ट भेजना |

टीवी न्यूज़ ऑडियो-विसुअल माध्यम है , इसलिए किसी स्टोरी को कवर करते वक़्त टीवी रिपोर्टिंग में बहुत जरुरी है कि ऑडियो और विसुआल दोनों पक्षों में संतुलन रहे | यानि विसुअल स्टोरी के साथ न्याय करते हुए होने चाहिए और एक स्टोरी में जितने पक्ष हो , उन सभी को अपनी बात कहने का पूरा मौका मिलना चाहिए | टीवी न्यूज़ की एक स्टोरी के लिए घटना स्थल की तमाम गतिविधियाँ कैमरे में कैद करने के अलावा ,बैलेंस स्टोरी बनाने के लिए पक्ष-विपक्ष के बयान और अधिकारीयों या पुलिस का पक्ष भी शामिल करना जरुरी है | रिपोर्टर को इन तमाम चीजों के लिए अलग अलग जगहों पर जाना पड़ सकता है और उनकी बात  रिकॉर्ड करनी पर सकती है (बाईट लेना)|

 टीवी रिपोर्टिंग की विभिन्न तकनीक
टेलीविज़न समाचारों मे रिपोर्टर को रिपोर्टिंग के लिए निम्न तकनीकें आनी चाहिए :-
·       पी टू सी
·       स्टूडियो स्पॉट्स
·       आउटस्टेशन रिपोर्टिंग
·       दृश्यों के लिए लेखन  
·       धवनि रहित / धवनि सहित

# पी टू सी – इसका अर्थ है पीस टू कैमरा | यह एक रिपोर्टर की टेलीविज़न समाचार रिपोर्टिंग में पहचान बन चूका है |
जब किसी समाचार / घटना के सम्बन्ध में रिपोर्टर जब घटनास्थल पर कैमरे में देखकर उस घटना से सम्बन्धित वाक्य या विवरण बोलता है, तो उसे पी टू सी कहते है | इसे स्टैंड अपर या स्टैंड अप भी कहते है |
  लाभ -:  जब कोई रिपोर्टर सीधे घटना-स्थल से रिपोर्ट करता है , इससे दर्शंकों को पता चलता है की रिपोर्टर वह मौजूद है | अतः लोग में खबर के प्रति विश्वसनीयता बनी रहती है | इससे खबर अधिक प्रभावशाली होती है |

# स्टूडियो स्पॉट्स :- अगर पी टू सी इस तरह का दृश्य समाचार है जो वाचक के अलावा किसी और के द्वारा स्टूडियो में खरे या घूमते- फिरते पढ़ा जाए, उसे स्टूडियो स्पॉट कहा जाता है | सामान्यतः यह किसी अनुभवी या विशेषज्ञ संवाददाता द्वारा किया जाता है |
  लाभ -: यह दृश्यों के साथ और अधिक से सूचना देने के काम आता हैं | इसमें किसी घटना के सारे तत्वों को जोरकर दर्शकों को स्टूडियो में कैमरे के सामने बताता है |

# आउटस्टेशन रिपोर्टिंग :- अगर विडियो कवरेज टेलीविज़न केंद्र स्थित नगर से बहार किया गया है या उसी नगर में भी हो , तो आलेख , डोपशीट और विडियो कैसेट – सभी को पारदर्शी लिफाफे में रखकर उसके गंतव्य स्थान तक भेजने की प्रक्रिया आउटस्टेशन रिपोर्टिंग कहलाती है |
आज दूरसंचार उपग्रह , माइक्रोवेव संपर्क , फैक्स , टेलेक्स आदि का प्रयोग केंद्र तक सामग्री पहुँचाने में किया जाने लगा है |

# धवनि रहित / धवनि सहित :- रिपोर्टिंग में धवनि शामिल करने से कवरेज में जान पर जाती है या यूँ कहे कि तस्वीरें सचमुच बोलने लग जाती है |
धवनि दो प्रकार की होती है –
·        सिंक धवनि – पर्दे पर दिखाए जा रही व्यक्ति , मशीनें , पशु-पक्षी आदि की वास्तविक धवनि शूटिंग के समय रिकॉर्ड की जाती है |
·        प्राकृतिक धवनि – इसमें रेलवे स्टेशन या समारोह का शोर शराबा बैकग्राउंड संगीत की तरह प्रयोग किया जाता है |

# दृश्यों के लिए लेखन – स्क्रीन पे दिखाए जा रहे चित्रों या शॉट्स के लिए उचित शीर्षक या जानकारी प्रदान करना जिससे दर्शकों को समाचार समझने में आसानी हो |
दृश्यों के लिए लेखन करते वक्त धयान रहे की वाक्य सरल हो, छोटे-छोटे हो एवं टू दा प्वाइंट हो |


No comments:

Post a Comment