Wednesday, 22 February 2017

टेलीविज़न उद्योग का विवेचन

टेलीविज़न उद्योग का विवेचन

अनुक्रमणिका

  • मीडिया और मनोरंजन
  • टीवी और मनोरंजन का अंतरसंबंध
  •  टेलीविज़न उद्योग
  •  निष्कर्ष


 मीडिया और मनोरंजन

मानस और रंजन, संस्कृत के इन शब्दों से बने मनोरंजन शब्द का अर्थ है, मन की प्रसन्नता |  मनुष्य सवभाव से ही मनोरंजन प्रिय होता है | मनोरंजन का इतिहास बहुत पुराना है | उसका संबंध मनुष्य सभ्यता से जुड़ा हुआ है | मनोरंजन एक ऐसी क्रिया है जिसमे सम्मिलित होने वाले को मन की शांति मिलती है और आनंद आता है | जो उद्योग मनोरंजन प्रदान करता है उसे मनोरंजन उद्योग कहते है |

पिछले 15 वर्षों में मीडिया के स्वरुप में बहुत तेज़ बदलाव देखने को मिला है | सूचना क्रांती एवं तकनीकी विस्तार के चलते मीडिया की पहुँच व्यापक हुई है | इसके सामानांतर भूमंडलीकरण, उदारीकरण एवं बाजारीकरण की प्रक्रिया भी तेज़ हुई है, जिससे मीडिया अछूता नहीं है | नए-नए चैनल खुल रहे हैं, नए-नए अखबार एवं पत्रिकाएं निकाली जा रही है और उनके स्थानीय एवं भाषायी संस्करणों में भी विस्तार हो रहा है | मीडिया के इस विस्तार के साथ चिंतनीय पहलू यह जुड़ा है कि मीडिया अब सामजिक सरोकारों से दूर होता जा रहा है | मीडिया की प्राथमिकताओं में अब शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी, विस्थापन जैसे मुद्दे रह ही नहीं गए हैं | उत्पादक, उत्पाद और उपभोक्ता के इस दौर में ख़बरों को भी उत्पाद बना दिया गया है, यानी जो बिक सकेगा, वही खबर है |  मीडिया के इस बदले रुख से उन पत्रकारों की चिंता बढ़ती जा रही है, जो यह मानते हैं कि मीडिया के मूल में सामजिक सरोकार होना चाहिए |

अख़बारों और टेलीविज़न समेत सभी संचार माध्यम एक तरह से प्रोडक्ट बन गए है | सभी को अपने सामान को बाज़ार में बेचना है और इसलिए यहाँ एक ऐसी प्रयोगशाला बना दी गई है जो 24 घंटे प्रयोग करती है | नया संस्करण लाने, नई तकनीक को अपनाने और फीडबैक के मुताबिक खुद को नए सांचे में ढालने में इसे को आपत्ति नहीं है |


टीवी और मनोरंजन का अंतरसंबंध

1959 से लेकर 90 की शुरुआत तक दूरदर्शन के नाम पर काफी हद तक सभ्य लेकिन सूखे मनोरंजन का ही राज रहा | दूरदर्शन मुख्य रूप से किसानों और साक्षरता की बात के आस-पास ही घूमता रहा | मनोरंजन के नाम पर हफ्ते में एक बार फिल्म और चित्रहार ही था | बस इसी में पेट भर लेना होता था |
उदारवाद की लहर में जब निजी चैनलों का प्रसारण आरम्भ हुआ तो टेलीविज़न का तो मानो जैसे परिभाषा ही बदल गई | फिर तो यहाँ कभी नागिन के डांस ने सबको नचाया, कभी प्रलय ने डराया तो कभी कपिल शर्मा ने हंसाया | पहली बार भारतीय टीवी पर ही यह प्रयोग हुआ कि न्यूज़ चैनलों के बीच में हसगुल्ले यानी कि हास्य परोसा जाने लगा | राजू श्रीवास्तव सरीखे एकाएक न्यूज़ चैनलों के आँखों के तारे बन चले |

फिल्म निर्माता और कलाकार भी जिस छोटे परदे को जिस पिछड़ी जाति जैसा माना करते थे, अब इसकी आरती उतारने लगे | फिल्मों के प्रमोशन के लिए ‘बंटी और बब्ली’ के रिलीज़ होते ही रानी मुख़र्जी और अभिषेक बच्चन NDTV की न्यूज़ तक पढ़ जातें है | आज टीवी को फिल्म से अलग नहीं माना जा सकता  | दोनों एक दुसरे में कब घुल गए किसी को पता ही नहीं चला |
यह टीवी का ही प्रभाव है कि करीब डेढ़ सौ साल पुराना सिनेमा अपनी बुनियादी सामाजिक जिम्मेदारी को ठेंगा दिखाते हुए फूहड़, बे-सिरपैर की कहानियों पर थोक में फिल्में बनाता जा रहा है | उद्योग की हैसियत से मनोरंजन अब मोटी कमाई का स्रोत बन गया है | अब हर तरह की कहानी केवल मज़ा लेने के लिए ही बनती, बनाई जाती हैं |

उदारीकरण के बाद पश्चिम के तरफ़ से खिडकियाँ खुल गयी है, भारतीय दर्शको की सोच का दायारा भी विस्तृत हो गया है | वह लंबी उड़ान भरना चाहता है और बोरियत से बाहर आने को आतुर है | सालों तक मीडिया में राजनीति हावी रही, अकेली राजनीति ना तो अब दर्शको को लुभाती और ना ही बहुत सम्मानित ही लगती है | वह प्रयोगधर्मी होना चाहता है और ऐसे कार्यक्रम चाहता है जो बोरियत को दूर करे और जीवन में रंग भरे, उसे नए विकल्प सुझाये और उसका साथी बने | इसलिए अब टीवी को अपना मेन्यु बदलना पड़ा है | उसे कोने कोने में बनने वाले नए पकवान और स्वाद इनमे शामिल करना पड़ रहा है, और यह भी कोशिश करनी पड़ रही है कि इन प्रयोगों का खर्च कहीं और से आये | यही वजह है कि भारत में न्यूज़ और मनोरंजन उद्योग इस समय अपने उफान पर है | मनोरंजन अब न्यूज़ मीडिया में रचता-बस्ता जा रहा है | अब न्यूज़ चैनल को देखते हुए कई बार उसमे से खबर को ढूँढना तक मुश्किल हो जाता है | बालीवुडाईजेशन ने न्यूज़ मीडिया को एक नए मंच पर लाकर खड़ा कर दिया है |   
टीवी पर विवाद को भी मनोरंजन का रूप दे दिया गया है | भारत-पाकिस्तान के विवादस्पद मुद्दे को भी दर्शको को मनोरंजन के रूप में परोसा जाता है | टीवी के लिए कटरीना कैफ के जन्मदिन पर शाहरुख-सलमान की लड़ाई भी एक हफ्ते के लिए खबर बन जाती है और इसे ब्रेकिंग न्यूज़ के दर्जे में डाला जाता है | मनोरंजन ऐसा कि जब कोई पत्रकार पी चिदंबरम पर जूता फेकता है तो उस दिन जूता और वो पत्रकार दोनों सेलेब्रिटी बन जाते है |
     
बेशक खबर अब ठिठोली करने लगी है | बरसो पहले टी.एस इलियट ने जब कहा था कि ‘ टीवी का काम मूलतः मनोरंजन परोसना ही होना चाहिए’ तो किसी को यह बात समझ में नहीं आई थी, लेकिन अब ऐसा ही है | टीवी के पहले चैनल से लेकर आखिरी चैनल तक मनोरंजन के नाम पर अब सपने बेचे जा रहे हैं | अब सवाल यह उठता है कि खबर दिखायेगा कौन ? उसे देखेगा कौन ? और असल में खबर होगी क्या ?  


टी.वी उद्योग

टेलीविज़न उद्योग मनोरंजन का अत्याधुनिक साधन है | टीवी ने मनोरंजन की दुनिया में एक नए युग का शुरुआत कर दी है | आज मनोरंजन उद्योग पर सबसे ज्यादा टेलीविज़न का दबदबा है |

अगर हम टीवी उद्योग की बात करे तो प्रसारण मंत्रालय की 2008-09 की रिपोर्ट के अनुसार देश में कुल 394 पंजीकृत टीवी चैनल्स है जिनमे 211 चैनल समाचार के है | टीवी का प्रवेश निजी क्षेत्र में 2000 में हुआ था लेकिन 9 वर्षो में ही इसने विशाल रूप धारण कर लिया और राष्ट्रीय जीवन में एक अहम भूमिका अख्तियार कर ली है |
आज भारत, चीन और अमेरिका के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा टीवी बाजार है | आज टीवी देश के 10.8 करोड़ घरो तक पहुच चूका है और 6.8 करोड़ घरो में केबल और सेटलाइट टीवी पहुच चूका है | इसके बावजूद टीवी के पहुच देश के 60% घरो से कम ही है और केबल और सेटलाइट टीवी की पहुच तो देश के कुल घरों के एक चौथाई से भी कम है | इसका सीधा-सीधा अर्थ यह है कि अभी देश में टीवी के विस्तार की व्यापक संभावनाए मौजूद है |

इतने सीमित विस्तार के बावजूद टीवी उद्योग आज देश का सबसे बड़ा मीडिया उद्योग है | 2005 में उसका कुल राजस्व 18500 करोड़ रुपये का था जो मीडिया उद्योग में उसके निकटतम प्रतिद्वंदी प्रिंट मीडिया के कुल राजस्व से दुगना था | सिर्फ डेढ़-दो दशकों में टीवी उद्योग का विज्ञापन राजस्व 1991 के 390 करोड़ से उछलकर 2005 में 6846 करोड़ पर पहुँच गया है | आज देश में 160 से अधिक टीवी चैनल विभिन्न भाषाओँ और प्रकारों में टीवी दर्शकों तक पहुँच रहे है | कोई 35-40 हजार केबल वालें और आधा दर्ज़न एमएसओ के साथ-साथ सार्वजनिक प्रसारक दूरदर्शन और कोई एक दर्जन बड़े देशी-विदेशी प्रसारणकर्ता इस बाज़ार में शामिल हैं |
भारतीय निवेश सलाहकार और क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगले तीन वर्षो में मीडिया मनोरंजन उद्योग के कुल विज्ञापन के आय का 40% टीवी के हिस्से में चला जाएगा | इसके कारण अगले तीन वर्षो में 100 और टीवी चैनल शुरू हो सकते है | मौजूदा समय में कुल 350 ब्रोडकास्टर हैं जो कुल 780 चैनेलो को संचालित करते है |
  
भारतीय मीडिया और मनोरंजन उद्योग 2005
मीडिया राजस्व (अरब रुपये)
टीवी – 185
प्रिंट मीडिया - 25
फिल्म - 72
रेडियो - 3.6 

भारत के कुछ प्रमुख टीवी प्रसारणकर्ता
कंपनी का कुल राजस्व 2004-05 में (करोड़ रुपये में)
जी टेलीफिल्म्स – 1360
स्टार इंडिया – 1300
सोनी एंटरटेनमेंट – 1000
दूरदर्शन – 664
सन टीवी – 300 

निष्कर्ष
आज मनोरंजन उद्योग पर सबसे ज्यादा टेलीविज़न का दबदबा है | टेलीविज़न उद्योग मनोरंजन का अत्याधुनिक साधन है | टीवी ने मनोरंजन की दुनिया में एक नए युग का शुरुआत कर दी है |

टीवी का प्रवेश निजी क्षेत्र में 2000 में हुआ था लेकिन 9 वर्षो में ही इसने विशाल रूप धारण कर लिया | प्रसारण मंत्रालय की 2008-09 की रिपोर्ट के अनुसार देश में कुल 394 पंजीकृत टीवी चैनल्स है जिनमे 211 चैनल समाचार के है | मौजूदा समय में कुल 350 ब्रोडकास्टर हैं जो कुल 780 चैनेलो को संचालित करते है | अगले तीन वर्षो में 100 और टीवी चैनल शुरू हो सकते है | टीवी के पहुच देश के 60% घरो से कम ही है और केबल और सेटलाइट टीवी की पहुच तो देश के कुल घरों के एक चौथाई से भी कम है | इसके बावजूद 2005 में उसका कुल राजस्व 18500 करोड़ रुपये का था जो मीडिया उद्योग में उसके निकटतम प्रतिद्वंदी प्रिंट मीडिया के कुल राजस्व से दुगना था | सिर्फ डेढ़-दो दशकों में टीवी उद्योग का विज्ञापन राजस्व 1991 के 390 करोड़ से उछलकर 2005 में 6846 करोड़ पर पहुँच गया है |

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