Monday, 20 February 2017

मीडिया और मनोरंजन का अंतरसंबंध

मीडिया और मनोरंजन का अंतरसंबंध



मीडिया और मनोरंजन


मानस और रंजन, संस्कृत के इन शब्दों से बने मनोरंजन शब्द का अर्थ है, मन की प्रसन्नता |  मनुष्य सवभाव से ही मनोरंजन प्रिय होता है | मनोरंजन का इतिहास बहुत पुराना है | उसका संबंध मनुष्य सभ्यता से जुड़ा हुआ है | मनोरंजन एक ऐसी क्रिया है जिसमे सम्मिलित होने वाले को मन की शांति मिलती है और आनंद आता है | जो उद्योग मनोरंजन प्रदान करता है उसे मनोरंजन उद्योग कहते है |

पिछले 15 वर्षों में मीडिया के स्वरुप में बहुत तेज़ बदलाव देखने को मिला है | सूचना क्रांती एवं तकनीकी विस्तार के चलते मीडिया की पहुँच व्यापक हुई है | इसके सामानांतर भूमंडलीकरण, उदारीकरण एवं बाजारीकरण की प्रक्रिया भी तेज़ हुई है, जिससे मीडिया अछूता नहीं है | नए-नए चैनल खुल रहे हैं, नए-नए अखबार एवं पत्रिकाएं निकाली जा रही है और उनके स्थानीय एवं भाषायी संस्करणों में भी विस्तार हो रहा है | मीडिया के इस विस्तार के साथ चिंतनीय पहलू यह जुड़ा है कि मीडिया अब सामजिक सरोकारों से दूर होता जा रहा है | मीडिया की प्राथमिकताओं में अब शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी, विस्थापन जैसे मुद्दे रह ही नहीं गए हैं | उत्पादक, उत्पाद और उपभोक्ता के इस दौर में ख़बरों को भी उत्पाद बना दिया गया है, यानी जो बिक सकेगा, वही खबर है |  मीडिया के इस बदले रुख से उन पत्रकारों की चिंता बढ़ती जा रही है, जो यह मानते हैं कि मीडिया के मूल में सामजिक सरोकार होना चाहिए |

अख़बारों और टेलीविज़न समेत सभी संचार माध्यम एक तरह से प्रोडक्ट बन गए है | सभी को अपने सामान को बाज़ार में बेचना है और इसलिए यहाँ एक ऐसी प्रयोगशाला बना दी गई है जो 24 घंटे प्रयोग करती है | नया संस्करण लाने, नई तकनीक को अपनाने और फीडबैक के मुताबिक खुद को नए सांचे में ढालने में इसे को आपत्ति नहीं है |


टीवी और मनोरंजन का अंतरसंबंध

1959 से लेकर 90 की शुरुआत तक दूरदर्शन के नाम पर काफी हद तक सभ्य लेकिन सूखे मनोरंजन का ही राज रहा | दूरदर्शन मुख्य रूप से किसानों और साक्षरता की बात के आस-पास ही घूमता रहा | मनोरंजन के नाम पर हफ्ते में एक बार फिल्म और चित्रहार ही था | बस इसी में पेट भर लेना होता था |
उदारवाद की लहर में जब निजी चैनलों का प्रसारण आरम्भ हुआ तो टेलीविज़न का तो मानो जैसे परिभाषा ही बदल गई | फिर तो यहाँ कभी नागिन के डांस ने सबको नचाया, कभी प्रलय ने डराया तो कभी कपिल शर्मा ने हंसाया | पहली बार भारतीय टीवी पर ही यह प्रयोग हुआ कि न्यूज़ चैनलों के बीच में हसगुल्ले यानी कि हास्य परोसा जाने लगा | राजू श्रीवास्तव सरीखे एकाएक न्यूज़ चैनलों के आँखों के तारे बन चले |

फिल्म निर्माता और कलाकार भी जिस छोटे परदे को जिस पिछड़ी जाति जैसा माना करते थे, अब इसकी आरती उतारने लगे | फिल्मों के प्रमोशन के लिए ‘बंटी और बब्ली’ के रिलीज़ होते ही रानी मुख़र्जी और अभिषेक बच्चन NDTV की न्यूज़ तक पढ़ जातें है | आज टीवी को फिल्म से अलग नहीं माना जा सकता  | दोनों एक दुसरे में कब घुल गए किसी को पता ही नहीं चला |
यह टीवी का ही प्रभाव है कि करीब डेढ़ सौ साल पुराना सिनेमा अपनी बुनियादी सामाजिक जिम्मेदारी को ठेंगा दिखाते हुए फूहड़, बे-सिरपैर की कहानियों पर थोक में फिल्में बनाता जा रहा है | उद्योग की हैसियत से मनोरंजन अब मोटी कमाई का स्रोत बन गया है | अब हर तरह की कहानी केवल मज़ा लेने के लिए ही बनती, बनाई जाती हैं |

उदारीकरण के बाद पश्चिम के तरफ़ से खिडकियाँ खुल गयी है, भारतीय दर्शको की सोच का दायारा भी विस्तृत हो गया है | वह लंबी उड़ान भरना चाहता है और बोरियत से बाहर आने को आतुर है | सालों तक मीडिया में राजनीति हावी रही, अकेली राजनीति ना तो अब दर्शको को लुभाती और ना ही बहुत सम्मानित ही लगती है | वह प्रयोगधर्मी होना चाहता है और ऐसे कार्यक्रम चाहता है जो बोरियत को दूर करे और जीवन में रंग भरे, उसे नए विकल्प सुझाये और उसका साथी बने | इसलिए अब टीवी को अपना मेन्यु बदलना पड़ा है | उसे कोने कोने में बनने वाले नए पकवान और स्वाद इनमे शामिल करना पड़ रहा है, और यह भी कोशिश करनी पड़ रही है कि इन प्रयोगों का खर्च कहीं और से आये | यही वजह है कि भारत में न्यूज़ और मनोरंजन उद्योग इस समय अपने उफान पर है | मनोरंजन अब न्यूज़ मीडिया में रचता-बस्ता जा रहा है | अब न्यूज़ चैनल को देखते हुए कई बार उसमे से खबर को ढूँढना तक मुश्किल हो जाता है | बालीवुडाईजेशन ने न्यूज़ मीडिया को एक नए मंच पर लाकर खड़ा कर दिया है |   
टीवी पर विवाद को भी मनोरंजन का रूप दे दिया गया है | भारत-पाकिस्तान के विवादस्पद मुद्दे को भी दर्शको को मनोरंजन के रूप में परोसा जाता है | टीवी के लिए कटरीना कैफ के जन्मदिन पर शाहरुख-सलमान की लड़ाई भी एक हफ्ते के लिए खबर बन जाती है और इसे ब्रेकिंग न्यूज़ के दर्जे में डाला जाता है | मनोरंजन ऐसा कि जब कोई पत्रकार पी चिदंबरम पर जूता फेकता है तो उस दिन जूता और वो पत्रकार दोनों सेलेब्रिटी बन जाते है |
     
बेशक खबर अब ठिठोली करने लगी है | बरसो पहले टी.एस इलियट ने जब कहा था कि ‘ टीवी का काम मूलतः मनोरंजन परोसना ही होना चाहिए’ तो किसी को यह बात समझ में नहीं आई थी, लेकिन अब ऐसा ही है | टीवी के पहले चैनल से लेकर आखिरी चैनल तक मनोरंजन के नाम पर अब सपने बेचे जा रहे हैं | अब सवाल यह उठता है कि खबर दिखायेगा कौन ? उसे देखेगा कौन ? और असल में खबर होगी क्या ?  



निष्कर्ष

आज टीवी कुल मिलाकर मनोरंजन उद्योग में ज़रूर तब्दील हुआ है | कोई भी कहानी जो आम दर्शक के मन में संवेदना, दुख या सरोकार पैदा कर सकती थी, अब वह केवल मज़ा देने और अधिक-से-अधिक सनसनी पैदा करने का काम करती है | करीब आधी सदी के सफ़र के बाद टेलीविज़न चमचमाती दुनिया की रंगीनियां घर-घर परोसने में तो कामयाब हुआ है, लेकिन गरीबी, अन्याय और शोषण की बदहाल कहानियाँ अब भी इसकी चारदीवारी के बाहर ही हैं |

भारत में टीवी की भूमिका विकास एवं सामाजिक मुद्दों से अलग हटकर हो ही नहीं सकती पर यहां टीवी इसके विपरीत भूमिका में आ चुका है | दुर्भाग्य की बात यह है कि उसका वास्तविक खरीददार कोई है भी या नहीं, पता करने की कोशिश नहीं की जा रही है | बिना किसी विकल्प के उन तथाकथित बिकाऊ ख़बरों को खरीदने (देखने-सुनने) के लिए लक्ष्य समूह को मजबूर किया जा रहा है | ख़बरों के उत्पादकों के पास इस बात का भी तर्क है कि यदि उनकी ‘बिकाऊ’ ख़बरों में दम नहीं होता, तो चैनलों की टी.आर.पी. कैसे बढ़ता ? इस बात में कोई दम नहीं है कि मीडिया का यह बदला हुआ स्वरूपप ही लोगों को स्वीकार है, क्यूंकि विकल्पों को खत्म करके दर्शकों को ऐसी ख़बरों को देखने-सुनने के लिए बाध्य किया जा रहा है | उन्हें सामजिक मुद्दों से दूर किया जा रहा है | 

No comments:

Post a Comment