परिशिष्ट लेखन की शैलियां
परिशिष्ट
परिशिष्ट के लिए अंग्रेजी में “Suppliment” शब्द का प्रयोग किया गया है | “Suppliment” का अंग्रेजी अर्थ है ‘Something added to complete a thing, or extend or strengthen the whole’ अर्थात ‘कुछ भी ऐसा जिसके जुड़ाव से कोई भी चीज़ पूरी हो या उसे बल मिले’ | समाचार पत्र के लिए परिशिष्ट भी यही कार्य करता है | परिशिष्ट समाचार पत्र की लोकप्रियता बढाता है और उसके प्रसार-प्रचार में वृद्धि करता है |
विभिन्न समाचार पत्र पाठकों के मनोरंजन, सूचना और समसामयिक मुद्दों पर
विश्लेषण हेतु अलग-अलग विषयों पर परिशिष्ट प्रकाशित करते है | परिशिष्ट प्रकाशन का
मुख्य उद्देश्य अपने समाचार पत्र का प्रसार संख्या बढ़ाना और उसे लोकप्रिय बनाना
होता है | इसलिए परिशिष्ट में रुचिकर और मनोरंजक सामग्री प्रकाशित की जाती है |
परिशिष्ट का इतिहास बहुत पुराना नहीं है, इसकी शुरुआत नब्बे के दशक में राष्ट्रीय
सहारा ने की थी | तब परिशिष्ट साप्ताहिक प्रकाशित होती थी | धीरे-धीरे इसकी लोकप्रियता बढ़ती गयी और इसे हफ़्ते
में तीन से चार दिन प्रकाशित किया जाने लगा | आज परिशिष्ट समाचार पत्र का एक
अभिन्न अंग बन गया है | यह इतना महत्वपूर्ण हो चुका है कि समाचार पत्र प्रतिदिन परिशिष्ट
का प्रकाशन करते है |
समाचार पत्रों का मुख्य प्रयास यह रहता है कि परिशिष्ट में प्रकाशित सामग्री विश्वसनीय
हो और साथ ही उसकी शैली आकर्षक हो, जिससे पाठक इसे चाव से
पढ़े, समझे और अपनी जानकारी को बढ़ा पायें | परिशिष्ट गंभीर लेखों की तरह बोझिल
और नीरस नहीं होते | सरल भाषा और रोचक शैली में लिखें गए परिशिष्ट पाठक को अपने
में बांध लेते है |
परिशिष्ट अलग-अलग विषयों पर पूरे विस्तार से जानकारी देता है जैसे स्वास्थ्य
से सम्बंधित विषय , मनोरंजन, पर्यावरण आदि | परिशिष्ट में अलग-अलग प्रकार की शैलियाँ विषयानुसार चयनित की जाती है | पाठक
को परिशिष्ट के माध्यम से किसी भी विषय की पूरी जानकारी सिलसिलेवार ढंग से मिलती
है |
लेखक परिशिष्ट के माध्यम से किसी प्रश्न, समस्या या सन्दर्भ विशेष पर अपने विचारों को पाठक वर्ग तक पहुँचा सकता है | कोई महत्वपूर्ण उपलब्धि, किसी महत्वपूर्ण तिथि, व्यक्ति की जन्म तिथि, त्यौहार, कला साहित्य, पर्यटन और पर्यावरण संबंधित विभिन्न प्रकार की शैलियों को इस्तमाल कर इन्हें आकर्षक बनाया जाता है |
लेखक परिशिष्ट के माध्यम से किसी प्रश्न, समस्या या सन्दर्भ विशेष पर अपने विचारों को पाठक वर्ग तक पहुँचा सकता है | कोई महत्वपूर्ण उपलब्धि, किसी महत्वपूर्ण तिथि, व्यक्ति की जन्म तिथि, त्यौहार, कला साहित्य, पर्यटन और पर्यावरण संबंधित विभिन्न प्रकार की शैलियों को इस्तमाल कर इन्हें आकर्षक बनाया जाता है |
परिशिष्ट का मुख्य उद्देश समाचार पत्र के प्रसार को बढ़ाना होता है इसलिए ज़रूरी
है कि परिशिष्ट की भाषा रोचक एवं मनोरंजक हो जिसे किसी भी वर्ग के लोग पढ़ सके | समाचार
पत्र से भिन्न परिशिष्ट में बच्चों, स्त्रियों, युवाओं के रूचि अनुसार लेख
प्रकाशित होते है | परिशिष्ट में पाठकों से प्राप्त सामग्री को भी प्रकाशित किया
जाता है ताकि पाठक इससे अपना प्रत्यक्ष जुड़ाव महसूस कर सके और समाचार का प्रसार बढ़े
|
परिशिष्ट के उदहारण
समाचार पत्र
|
शिक्षा और रोजगार
|
पर्यटन
|
महिला संबंधित
|
विश्लेष्णात्मक
|
बालोपयोगी
|
मनोरंजन
|
दैनिक जागरण
|
जोश
|
यात्रा
|
झरोखा
|
मुद्दा
|
जूनियर जागरण
|
ग्लैमर दुनिया
|
दैनिक भास्कर
|
अभिवयक्ति
|
जूनियर भास्कर
|
मधुरिमा
|
|||
राष्ट्रीय सहारा
|
आधी दुनिया
|
हस्तक्षेप
|
||||
अमर उजाला
|
उडान, कैंपस
|
रूपायन
|
रंगायन
|
|||
हिन्दुस्तान
|
नई दिशाएं
|
हेल्थ
|
नंदन
|
अनोखी
|
||
जनसत्ता
|
रविवारीय
|
रविवारीय
|
||||
नवभारत टाइम्स
|
एजुकेशन
|
डेल्ही टाइम्स
|
डेल्ही टाइम्स
|
|||
नवोदय टाइम्स
|
मनोरंजन एवं नारी
|
मनोरंजन एवं नारी
|
||||
पंजाब केशरी
|
एजुकेशन करियर
|
मनोरंजन
|
परिशिष्ट लेखन की शैलियां
विवरणात्मक शैली
विवरणात्मक शैली में विषय की व्याख्या की जाती है | इसमें पाठको
को किसी भी विषय की विस्तृत रूप से जानकारी दी जाती है | इस शैली के अंतर्गत शिक्षा
और रोजगार, पर्यटन, पर्यावरण, स्वास्थ्य आदि सम्बन्धी विषयों पर पूरी जानकारी दी
जाती है |
विवरणात्मक परिशिष्ट में यात्रा वृतांत, शिक्षा, रोज़गार, पर्यटन, खान-पान,
स्वास्थ्य, आदि संबंधित लेख प्रकाशित होते है | परिशिष्ट में इस शैली का प्रयोग कर
पाठक को किसी भी विषय की पूर्ण एवं विस्तृत जानकारी दी जाती है | इसमें विषय के
सकारात्मक पक्ष के साथ नकारात्मक पक्ष को भी पाठकों के समक्ष लाया जाता है | इसे
पढ़कर पाठकों को विषय से संबंधित अपने सारे सवालों के जवाब मिल जाते है |
उदाहरण के तौर पर यात्रा – दैनिक जागरण, जोश – दैनिक जागरण, नई दिशाएं –
हिन्दुस्तान, कैंपस – अमर उजाला, एजुकेशन – नव भारत टाइम्स, आदि प्रमुख विवरणात्मक
परिशिष्ट है |
भावनात्मक शैली
जैसा की इस शैली के नाम से ही ज्ञात होता है कि जिस विषय में भाव हो और जो
पाठकों के ह्रदय को स्पर्श करे | भावनात्मक शैली मानव संवेदना से जुड़ा होता है |
भावनात्मक शैली मार्मिकता प्रधान होती है | इस शैली का प्रयोग मुख्यतः फीचर में
किया जाता है तथा इसके अलावा कभी-कभी इसका प्रयोग यात्रा-वृतांत और रिपोर्ताज में
भी किया जाता है |
भावनात्मक शैली मानसिक अंतर्द्वंदो और आत्म-विश्लेषण से युक्त होती है | इस
शैली में विभिन्न भाव जैसे सुख, दुख, प्रेम, करुणा, क्रोध, आदि का समावेश होता है |
भावनात्मक परिशिष्ट में ऐसे लेख प्रकाशित होते है जो मानव भावनाओं पर
केन्द्रित होते है जैसे प्रेम-प्रसंग, सांस्कृतिक, विशेष उपलब्धियां, सामाजिक आदि
|
विश्लेषणात्मक शैली
इस शैली में किसी भी तत्कालीन घटना या विषय का विश्लेषण कर पाठकों को उस विषय के
बारे में विस्तृत ब्यौरा दिया जाता है | इसके माध्यम से लेखक अपनी राय को लोगों की
राय बनता है | विश्लेषणात्मक शैली में सबसे महत्वपूर्ण कार्य है विषय का चयन एवं विषय
पर शोध-कार्य | शोध जितना गहन हो, लेख उतना ही अधिक प्रभावशाली होता है |
विश्लेष्णात्मक परिशिष्ट में किसी एक विषय पर पूरे शोध कार्य के साथ विषय की
कलात्मक एवं रोचक परिशिष्ट तैयार किया जाता है जो उस विषय से संबंधित पाठक के सभी
प्रश्नों का उत्तर उन्हें देने का प्रयास करता है | जो मुद्दे समाचार पत्र में
प्रकाशित नहीं हो पाते परन्तु महतवपूर्ण होते है तो ऐसे मुद्दों को पूरे विश्लेषण
के साथ समाचार पत्र के परिशिष्ट में प्रकाशित किया जाता है | सामाजिक चिंतन से
पूर्ण ऐसे परिशिष्ट पाठको के ज्ञान में वृद्धि के साथ साथ उसे सामाजिक विषयों पर
चिंतन के लिए बाध्य करती है |
विश्लेषणात्मक परिशिष्ट में प्रमुख रूप से हस्तक्षेप – राष्ट्रीय सहारा, मुद्दा – दैनिक जागरण, अभिवयक्ति
– दैनिक भास्कर आदि प्रकाशित होते है जिनमे सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, आदि
मुद्दों का पूरा विश्लेषण किया जाता है |
व्यंगात्मक शैली
व्यंगात्मक शैली व्यंग (ताना) आधारित शैली होती है | समाज में जहाँ विसंगति,
विषमता या विडम्बनापूर्ण स्थिति होती है वहां विवरण सीधे-सीधे नहीं बल्कि
व्यंगात्मक ढंग से दिया जाता है | जहा विवरण करने में व्यंग का प्रयोग होता है, उसे
व्यंगात्मक शैली कहते है | इस शैली में मुहावरों व लोकोक्तियों का प्रयोग कर व्यंग
किया जाता है |
व्यंग्यात्मक परिशिष्ट में मुख्य रूप से राजनैतिक मामलों पर केंद्रित होता है |
इसमें सरकार की रणनीति, कामकाज, योजनाएं आदि पर व्यंग्यात्मक तरीके से आलोचना की
जाती है| व्यंग्यात्मक शैली में लिखने के लिए भाषा और साहित्य का व्यापक ज्ञान और
समझ होनी चाहिए | शब्दों का दोहराव भी ज्यादा नहीं चाहिए वरना इस शैली में लिखे गए लेख नीरस लगेगे | हस्तक्षेप – राष्ट्रीय सहारा, मुद्दा – दैनिक
जागरण, अभिव्यक्ति – दैनिक भास्कर कुछ प्रमुख परिशिष्ट है जो व्यंग्यात्मक तरीके
से सरकार असफलता और नीतियों पर कटाक्ष करते है |
चित्रात्मक शैली
चित्रात्मक शैली में लेखक अपने शब्दों और रचनात्मकता से पाठक के मन-मस्तिष्क
में चित्रों का निर्माण करते है और पाठक वर्ग उस प्रसंग को जीने लगता है और उस
विषय से जुड़ जाता है | जहाँ कम से कम शब्दों में किसी व्यक्ति और वस्तु आदि का
वर्णन किया जाता है उसे चित्रात्मक शैली कहते है|
इस शैली को पत्रकार द्वारा पाठक वर्ग को सूचित एवं मनोरंजित करने के लिए
ज्यादा प्रयोग किया जाता है | चित्रात्मक शैली बिना किसी साधन के केवल अक्षरों और
शब्दों द्वारा हमें चित्रों और दृश्यों का सुख देती है |
यात्रा वृतांत या संस्मरण आदि में भी चित्रात्मक शैली का प्रयोग होता है | इस
शैली का प्रयोग दो रूपों में किया जाता है – पहला दृश्यों और वस्तुओं का चित्रांकन
कर उन्हें सजीव रूप प्रदान करने के लिए और दूसरा पात्र के रूप एवं सौंदर्य को
दिखाने के लिए |
चित्रात्मक शैली तभी सफल है जब पाठक अपने मन मस्तिष्क में दृश्य निर्माण कर
सके |
No comments:
Post a Comment