Thursday, 23 February 2017

परिशिष्ट लेखन

परिशिष्ट लेखन



अनुक्रमणिका


  • परिशिष्ट
  • परिशिष्ट के प्रकार
  • परिशिष्ट लेखन की शैलियां
  • परिशिष्ट लेखन की भाषा


परिशिष्ट

भारत में परिशिष्ट की शुरुआत नब्बे के दशक में राष्ट्रीय सहारा ने की | तब परिशिष्ट साप्ताहिक रूप से प्रकाशित हुआ करते थे | धीरे-धीरे इसकी लोकप्रियता बढती गई और यह सप्ताह के सातों दिन प्रकाशित होने लगा | परिशिष्ट अंग्रेजी के शब्द सप्लीमेंट (supplement)) का पर्याय है का जिसका अर्थ है किसी भी विषय-वस्तु को बल प्रदान करना | आज परिशिष्ट भी समाचार पत्र को बल प्रदान कर उसकी लोकप्रियता और प्रसार को बढ़ा रहे है |

टीवी के आने के बाद यह माना जाने लगा था कि समाचार पत्रों के पाठकों की संख्या कम हो जाएगी | परन्तु परिशिष्ट के प्रकाशन प्रारंभ होने के बाद समाचार पत्रों के व्यापर में पहले से भी ज्यादा वृद्धि हो गई | आज टीवी और इन्टरनेट के युग में भी समाचार पत्र अपना एक विशेष स्थान बनाये हुए है | इसमें परिशिष्ट की एक अहम भुमिका है | परिशिष्ट ने समाचार पत्रों के स्वरुप को बदला, समाचार पत्रों को रंगीन और आकर्षक बनाया |

परिशिष्ट ने समाचार पत्रों के पुराने पाठकों को तो पकड़े रखा साथ ही नए पाठकों (युवा, बच्चे, महिलाएं) को भी समाचार पत्र से जोड़ा | आज कई लोग परिशिष्ट अनुसार समाचार पत्र खरीदने लगे है | किसी दिन पाठक हिन्दुस्तान को पढ़ते है तो किसी दिन दैनिक जागरण तो कभी सहारा | प्रतिदिन पाठकों द्वारा किये जाने वाले बदलाव का मूल कारण समाचार पत्रों के साथ प्रकाशित होने वाला परिशिष्ट ही है |
विभिन्न समाचार पत्र पाठकों के मनोरंजन, सूचना और समसामयिक मुद्दों पर विश्लेषण हेतु अलग-अलग विषयों पर परिशिष्ट प्रकाशित करते है | परिशिष्ट प्रकाशन का मुख्य उद्देश्य अपने समाचार पत्र का प्रसार संख्या बढ़ाना और उसे लोकप्रिय बनाना होता है | इसलिए परिशिष्ट में रुचिकर और मनोरंजक सामग्री प्रकाशित की जाती है |

समाचार पत्रों का मुख्य प्रयास यह रहता है कि परिशिष्ट में प्रकाशित सामग्री विश्वसनीय हो और साथ ही उसकी शैली आकर्षक हो, जिससे पाठक इसे चाव सेपढ़े, समझे और अपनी जानकारी को बढ़ा पायें | परिशिष्ट गंभीर लेखों की तरह बोझिल और नीरस नहीं होते | सरल भाषा और रोचक शैली में लिखें गए परिशिष्ट पाठक को अपने में बांध लेते है |

परिशिष्ट में अलग-अलग प्रकार की शैलियाँ विषयानुसार चयनित की जाती है | पाठक को परिशिष्ट के माध्यम से किसी भी विषय की पूरी जानकारी सिलसिलेवार ढंग से मिलती है | लेखक परिशिष्ट के माध्यम से किसी प्रश्न, समस्या या सन्दर्भ विशेष पर अपने विचारों को पाठक वर्ग तक पहुँचा सकता है
परिशिष्ट में पाठकों से प्राप्त सामग्री जैसे कवितायेँ, कहानियां, चुटकुले, चित्रकारी आदि को छापा जाता है | इससे पाठक अपना प्रत्यक्ष जुड़ाव महसूस करते है और समाचार पत्र का प्रसार बढ़ता है और साथ-साथ परिशिष्ट में छापने को सामग्री भी मिल जाती है |

परिशिष्ट का स्वरुप
परिशिष्ट का कोई निश्चित स्वरुप नहीं है परन्तु आम-तौर पर परिशिष्ट का स्वरुप भी समाचार पत्रों के अन्य विधाओं जैसा ही होता है |
परिशिष्ट के मुख्य रूप से चार अंग होते है –
Ø शीर्षक
परिशिष्ट का सबसे महत्वपूर्ण अंग उसका शीर्षक होता है | शीर्षक ही पाठको का ध्यान आकर्षित करता है और उन्हें लेख पढने को मजबूर करता है | शीर्षक छोटा हो परन्तु ऐसा हो जो पुरे लेख का सार प्रस्तुत करता हो | इसकी भाषा रोचक हो और पाठको के मन में जिज्ञासा उत्पन्न करे | एक अच्छा शीर्षक लेख के सौन्दर्य और प्रभाव दोनों को बढाता है | 
शीषर्क में मुख्यतः तीन उदेश्य निहित होते है –
·        कथ्य को उजागर करना
·        सार प्रस्तुत करना
·        पाठक की इच्छाशक्ति जाग्रत करना

Ø इंट्रो या आमुख
शीर्षक के बाद परिशिष्ट का दूसरा मुख्य  अंग इंट्रो होता है | इंट्रो किसी भी लेख का प्राण तत्त्व होता है | यह पूर्ण संतुलित और मूल विषय से जुड़ा हुआ होता है और पाठक को आगे पढने के लिए बाध्य करता है | अगर इंट्रो आकर्षक और तथ्यपूर्ण न हो तो पाठक आगे पढ़ेगा ही नहीं | इंट्रो का उदेश्य लेख में सजीवता का संचार करना है |

    
इंट्रो के प्रकार
·        सारयुक्त  
·        प्रश्नात्मक
·        विशिष्ट घटनात्मक
·        विरोधात्मक
·        चित्रात्मक
·        नाट्यात्मक
·        लघु वाक्य

Ø मध्य
लेख के आरंभ में विषय संकेत और महत्व को सार रूप देने के बाद विषय का सम्पूर्ण विकास मध्य भाग में ही होता है | क्रम्बध्य तरीके से लेखक अपने विचार या ज्ञान सामग्री को पाठको के समक्ष रखता है | विषय को अधिक पुष्ट एवं प्रामाणिक बनाने वाले तथ्यों को मध्य में रखा जाता है | मध्य इंट्रो के इर्द-गिर्द रह कर मूल कथ्य का विकास करता है |

Ø अंत 
अंतिम भाग में लेखक पाठको के सभी प्रश्नों का उत्तर देता है तो वहीँ कभी-कभी पाठको के समक्ष प्रश्न भी रखता है और पाठको को सोचने पर मजबूर करता है | विश्लेष्णात्मक और व्यंगात्मक परिशिष्ट में लेखक पाठको के लिए नए विचार सूत्र देता है जो पाठको को सोचने पर मजबूर करता है और उनकी जिज्ञासाओं का समाधान करने का प्रयास करता है , जितना सशक्त आरम्भ होता है उतना ही सशक्त अंत भी होता है |

परिशिष्ट के प्रमुख प्रकार

·      सूचनापरक परिशिष्ट - सूचनापरक परिशिष्ट में किसी भी विषय की पूर्ण रूप से सूचना दी जाती है | इसमें विषय के हर पहलू को बताया जाता है | | इसे पढ़कर पाठकों को विषय से संबंधित अपने सारे सवालों के जवाब मिल जाते है |
इस शैली के अंतर्गत
1.   शिक्षा और रोजगार
2.   पर्यटन, पर्यावरण
3.   स्वास्थ्य
4.   यात्रा वृतांत
5.   पर्यटन

सूचनापरक परिशिष्ट में प्रमुख रूप से यात्रा – दैनिक जागरण, जोश – दैनिक जागरण, नई दिशाएं – हिन्दुस्तान, कैंपस – अमर उजाला, एजुकेशन – नव भारत टाइम्स, आदि प्रमुख सूचनापरक परिशिष्ट है |

मनोरंजक परिशिष्टमनोरंजकपरक परिशिष्ट का एक ही उद्देश्य है पाठको का मनोरंजन करना |

मनोरंजक परिशिष्ट के प्रमुख विषय –
1.   बॉलीवुड
2.   खेल
3.   यात्रा
4.   बालोपयोगी
5.   साज-सज्जा
6.   खान-पान

मनोरंजक परिशिष्ट में प्रमुख रूप से – ग्लैमर दुनिया - दैनिक जागरण, मधुरिमा – दैनिक भास्कर, रंगायन – अमर उजाला, अनोखी – हिन्दुस्तान, मनोरंजन एवं नारी – नवोदय टाइम्स आदि प्रकाशित होते है |


विश्लेष्णात्मक परिशिष्टविश्लेष्णात्मक परिशिष्ट में किसी एक विषय पर पुरे शोधकार्य  के साथ विषय की कलात्मक एवं रोचक परिशिष्ट तैयार किया जाता है जो विषय से संबंधित पाठक के सभी प्रश्नों के उत्तर देने में प्रयास करता है | इसमें किसी एक विषय व्याप्त सूचनाओं को पाठको को परोसा जाता है |
·         
विश्लेष्णात्मक परिशिष्ट के प्रमुख विषय –
1.   महिला समस्या एवं महिला सशक्तिकरण
2.   पर्यावरण
3.   दलित समस्या
4.   आर्थिक मुद्दे
5.   आदिवासी एवं जनजाति
6.   राजनितिक मुद्दे
7.   कानून एवं व्यवस्था
8.   स्वास्थ्य
9.   भ्रष्टाचार

विश्लेषणात्मक परिशिष्ट में प्रमुख रूप से हस्तक्षेप – राष्ट्रीय सहारा, मुद्दा – दैनिक जागरण, अभिवयक्ति – दैनिक भास्कर आदि प्रकाशित होते है |


परिशिष्ट लेखन की शैलियां

मुख्य रूप से परिशिष्ट लेखन की पांच शैलियां होती है-

Ø चित्रात्मक शैली – किसी भी विषय को पढ़ कर जब पाठकों के मन में दृश्य और चित्रों का निर्माण हो, लेखन कि इस शैली को चित्रात्मक शैली कहते है | चित्रात्मक शैली के प्रयोग से किसी भी घटना या स्तिथि का पूरा दृश्य और बिंव पाठक के सामने उपस्थित हो जाता है | परिशिष्ट में इसका प्रयोग किसी भी व्यक्ति के रूप और सौन्दर्य , दृश्यों का चित्रांकन, यात्रा वृतांत, संस्मरण आदि में किया जाता है |

Ø विवरणात्मक शैली – जिस शैली में किसी की विषय के बारे में पूर्ण विवरण या व्याख्या की जाती है उसे विवरणात्मक शैली कहते है | विवरणात्मक परिशिष्ट में यात्रा वृतांत, शिक्षा, रोज़गार, पर्यटन, खान-पान, स्वास्थ्य, आदि संबंधित लेख प्रकाशित होते है |
यात्रा – दैनिक जागरण, जोश – दैनिक जागरण, नई दिशाएं – हिन्दुस्तान, कैंपस – अमर उजाला, एजुकेशन – नव भारत टाइम्स, आदि प्रमुख विवरणात्मक परिशिष्ट है |

Ø व्यंगात्मक शैली - जहा विवरण करने में व्यंग का प्रयोग होता है, उसे व्यंगात्मक शैली कहते है | व्यंगात्मक शैली व्यंग (ताना) आधारित शैली होती है | व्यंग्यात्मक परिशिष्ट में मुख्य रूप से राजनैतिक मामलों पर केंद्रित होता है | इस शैली में मुहावरों एवं लोकोक्तियों का प्रयोग कर व्यंग किया जाता है |
हस्तक्षेप – राष्ट्रीय सहारा, मुद्दा – दैनिक जागरण, अभिव्यक्ति – दैनिक भास्कर कुछ प्रमुख परिशिष्ट है |

Ø भावात्मक शैली – जिस शैली में भाव की प्रधानता हो, उसे भावनात्मक शैली कहते है | भावनात्मक शैली मानव संवेदना से जुड़ा होता है | भावनात्मक शैली मार्मिकता प्रधान होती है | भावनात्मक परिशिष्ट में ऐसे लेख प्रकाशित होते है जो मानव भावनाओं पर केन्द्रित होते है जैसे प्रेम-प्रसंग, सांस्कृतिक, विशेष उपलब्धियां, सामाजिक आदि |

Ø विश्लेषणात्मक शैली - विश्लेष्णात्मक परिशिष्ट में किसी एक विषय पर पूरे शोध कार्य के साथ विषय की कलात्मक एवं रोचक परिशिष्ट तैयार किया जाता है जो उस विषय से संबंधित पाठक के सभी प्रश्नों का उत्तर उन्हें देने का प्रयास करता है | शोध जितना गहन हो, लेख उतना ही अधिक प्रभावशाली होता है | विश्लेषणात्मक परिशिष्ट में प्रमुख रूप से हस्तक्षेप – राष्ट्रीय सहारा, मुद्दा – दैनिक जागरण, अभिवयक्ति – दैनिक भास्कर आदि प्रकाशित होते है |

परिशिष्ट लेखन की भाषा
परिशिष्ट प्रकाशन का मुख्य उद्देश्य अपने समाचार पत्र का प्रसार संख्या बढ़ाना और उसे लोकप्रिय बनाना होता है | इसलिए परिशिष्ट में रुचिकर और मनोरंजक सामग्री प्रकाशित की जाती है | समाचार पत्रों का मुख्य प्रयास यह रहता है कि परिशिष्ट में प्रकाशित सामग्री विश्वसनीय हो और साथ ही उसकी शैली आकर्षक हो, जिससे पाठक इसे चाव से पढ़े, समझे और अपनी जानकारी को बढ़ा पायें |

परिशिष्ट की भाषा के निम्न गुण होते है –

·       भाषा सरल, रोचक और आकर्षक होती है
·       सामान्य बोलचाल की भाषा का प्रयोग होता है
·       अंग्रेजी के शब्दों का ज्यादा प्रयोग होता है
·       भाषा, शैली आधारित होती है; अर्थात जैसी शैली वैसी भाषा
(व्यंग्यात्मक शैली के लिए व्यंगपूर्ण भाषा तो भावनात्मक शैली में मार्मिक भाषा का प्रयोग)
·       साहित्यिक भाषा का प्रयोग नहीं होता है
·       ट्रेंडी या व्यवहारोपयोगी भाषा का अधिक प्रयोग होता  है
·       मुहावरे एवं लोकाक्तियों का प्रयोग होता है
·       बोझिल और नीरस भाषा का प्रयोग नहीं होता

3 comments:

  1. superb note for media students

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  2. Thank you . Content is good but it's quite limited.

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